सियासी हलकों में खद्दरधारी इसे ‘तुरुप का पत्ता’ मान रहे हैं, तो किसी की नजर में ये ‘पॉलिटिकल पैंतरा’ है. लेकिन असल में कांग्रेस के लिए ये बेसब्र इंतजार के वरदान में तब्दील होने जैसा है. इंतजार प्रियंका गांधी वाड्रा का. वरदान प्रियंका गांधी वाड्रा को सीधे तौर पर सियासत में उतारने का.
आज से पहले प्रियंका सिर्फ अमेठी और रायबरेली तक बेटी और बहन की शक्ल में कमान संभाले दिखाई पड़ती थीं. अब प्रियंका कांग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव भी हैं और उत्तर प्रदेश के पुरबिया हिस्से यानी पूर्वांचल की सुप्रीमो भी.
कोई शक नहीं पूरी कांग्रेस को राहत मिली है. उन कांग्रिसयों को, खासकर जो राहुल की जगह प्रियंका को ही चेहरे के तौर पर देखना चाहते थे. ये वो लोग हैं, जिन्होंने बरसों प्रियंका को चेहरा बनाने को पोस्टर लगाए हैं, नारे लगाए हैं और मन से माना है कि प्रियंका ही कांग्रेस का बेड़ा पार कर सकती हैं.